Wednesday, April 15, 2009

कहीं ये भारत तो नहीं ?

मुझे इ-मेल से कुछ चित्र मिले जो एक कहानी कहते हैं. सवाल ये है कि आखिर ये कहानी किसकी है ? क्या भारत की अर्थव्यवस्था की ?











क्या इसके बाद भी कुछ और कहने को बचा है ?

Sunday, April 5, 2009

यदि आपके पास कंप्यूटर है तो ज़रूर पढें.


आइये आज आपको कंप्यूटर के एक महतवपूर्ण अंग से मिलवाया जाये. कल तक इसके बिना कंप्यूटर की कल्पना करना भी मुश्किल था और आज हालत ये है की इसका प्रयोग नाम मात्र को ही रह गया है. कम से कम, नई पीढ़ी तो इसका प्रयोग नहीं ही कर रही है. और...बीते हुए कल के इस हिस्से का नाम है, या कहें कि था, फ्लोप्पी. एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक डाटा ले जाने और, डाटा संभाल कर रखने का ये बहुप्रचलित साधन रहा.

फ्लोप्पी को पहला झटका, सीडी राईटर के आने से लगा. लेकिन फ्लोप्पी फिर भी चलन से बाहर नहीं हुईं. फिर आयी सीडी सेशन खुला रखने की विधि, इसके चलते एक ही साधारण सीडी पर पिछला मिटाए बिना और लिखा जा सकता था. फिर सीडी-आर आईं. इस सीडी पर पूरा मिटा कर दोबारा लिखा जा सकता था. इन सीडी के आने से फ्लोप्पी के जीवन की उलटी गिनती शुरू हो गयी.

तब आई, थम्ब-ड्राइव. जिसे आजकल पेन-ड्राइव के नाम से बेहतर जाना जाता है. फ्लैश तक़निक आधारित इस ड्राइव ने सीडी ड्राइव के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी. आज की नयी पीढी ने अगर फ्लोप्पी ड्राइव न देखी हो तो मुझे आश्चर्य नहीं, क्योंकि नए आ रहे कंप्यूटर में अब फलोप्पी ड्राइव लगाई ही नहीं जा रही है. शुरू-शुरू में हार्ड डिस्क के अलावा एक बड़ी फलोप्पी की ड्राइव होती थी. फिर दो फ्लोप्पी ड्राइव आने लगीं, एक बड़ी और एक छोटी फलोप्पी के लिए, ताकि एक फलोप्पी से दूसरी में बिना हार्ड डिस्क के, कॉपी किया जा सके. इसके बाद कुछ समय तक तो छोटी ड्राइव लगाई जातीं रहीं. और फिर धीरे धीरे ये भी गुम हो गयीं.

यूं तो फलोप्पी समय-समय पर अलग-अलग आकर और क्षमता में आती रहीं लेकिन, मोटे तौर पर ये पांच आकारों में आयीं, जैसा कि ऊपर के चित्र में दिखाया गया है. इन सभी फलोप्पी की क्षमता इनके आकार के हिसाब से बदलती रही.
(1) सबसे पहले प्रयोग में आने वाली फलोप्पी 8 इंच आकर की थी और इसकी लोकप्रिय क्षमता 1.5 MB थी. ये फलोप्पी, 1970 के आसपास प्रयोग में आई.
(2) फिर आई, 5.25 इंच आकर की फलोप्पी इसकी क्षमता 110 KB से लेकर 100 MB तक रही.
(3) इसके बाद 3.5 इंच की फलोप्पी आई और इसकी क्षमता 1.44 MB से 200 MB तक रही.
(4) 3 इंच फलोप्पी 128 KB से 720 KB तक और,
(5) 2 इंच आकर वाली फलोप्पी भी आयीं.
इन सभी को इनकी क्षमता के आधार पर अलग-अलग नामों से भी जाना जाता था, जैसा कि ऊपर के चित्र में दिखाया गया है.

8 इंच फलोप्पी का ज़माना वो था, जब कंप्यूटर आम लोगों की पहुँच से बाहर थे. 3 इंच और 2 इंच फलोप्पी बहुत कम चलन में आयीं. जबकि 5.25 इंच और 3.5 इंच फलोप्पी सर्वाधिक चलन में रहीं. ज़ाहिर है, कि इनके लिए कंप्यूटर में ड्राइव भी अलग-अलग आकर की ही लगाई जाती थीं. यह वो समय था जब कंप्यूटर के क्षेत्र में मानकीकरण जैसी कोई चीज़ नहीं थी. बल्कि HP सरीखी कुछ कम्पनियाँ तो जानबूझ कर आपने उत्पाद सबसे अलग बना रही थीं. ताकि ग्राहक किसी और उत्पादक के हिस्से पुर्जे न लगा सके. यही मानसिकता माइक्रोसॉफ्ट की है, सॉफ्टवेर के क्षेत्र में. आगे आगे देखिये होता है क्या.

Saturday, April 4, 2009

माइक्रोसॉफ्ट की एक और दुकान बंद.


क्या आप जानते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट के एकाधिकार के दिन बीतने ही वाले हैं? और ये, केवल प्रतियोगिता के कारण ही नहीं होने वाला बल्कि, लोगों की बदलती आदतों और इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग ने भी इस पर कुठाराघात किया है. ये बात मैं नहीं कह रहा, बल्कि यही विचार माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी ही वेबसाइट पर व्यक्त किये हैं. यूं तो माइक्रोसॉफ्ट के अनगिनत कंप्यूटर उत्पाद हैं जिन्हें कंप्यूटर उपभोक्ता जाने अनजाने प्रयोग करते हैं. किन्तु माइक्रोसॉफ्ट के कुछ ऐसे सोफ्टवेयर भी हैं जिन्हें ख़रीदने के लिए उपभोक्ता बाकायदा पैसे देकर लम्बे समय तक माइक्रोसॉफ्ट के साथ जुड़ जाते हैं.

ऐसे ही एक सोफ्टवेयर का नाम है "माइक्रोसॉफ्ट एनकार्टा" (MSN® Encarta®). आपने एनसाइक्लोपीडिया का नाम ज़रूर सुना होगा. और हो सकता है कि आपने ब्रितान्निका एनसाइक्लोपीडिया का नाम भी सुना हो, संभव ये भी है कि आपने इन्हें किताब या सोफ्टवेयर के रूप में पढ़ा भी हो. इसी तरह का एक एनसाइक्लोपीडिया "माइक्रोसॉफ्ट एनकार्टा" के नाम से माइक्रोसॉफ्ट भी लम्बे समय से बनाता आ रहा है. एनकार्टा न केवल सीडी के रूप में उपलब्ध रहता है बल्कि यह ऑनलाइन भी उपलब्ध रहा है. इसके लिए लोग, नियत शुल्क का भुगतान कर लाग-इन करते रहे हैं.

लेकिन अब माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की है कि वो अब इसका उत्पादन बंद कर रहा है. माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि 31 अक्टूबर, 2009 से इसकी संसार भर में फैली विभिन्न साइट्स बंद कर दी जाएँगी सिवाय, जापान के. जापान की इकलौती बची साईट उसके दो महीने बाद, यानी 31 दिसम्बर, 2009 को बंद की जायेगी.

आज विकीपीडिया, गूगल-सर्च जैसी अनगिनत सुविधाओं के चलते इस तरह के पैसे लेकर सूचना देने वाले लोगों के दिन ज्यादा नहीं बचे हैं. वास्तव में आज, सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति ही नहीं हो रही है. सूचना की उपलब्धता को लेकर दुनिया के मान-दंड भी बदल रहे हैं. जहां सूचना पर एकाधिकार समाप्त हो रहा है वहीँ दूसरी ओर सूचना समग्र, शीघ्र और निशुल्क उपलब्ध कराये जाने पर असहमति समाप्त हो रही है.

Friday, April 3, 2009

आपको भी जल्दी ही, नया मोबाइल खरीदना ही होगा...



क्या आपको पता है कि आपके मोबाइल फ़ोन के दिन चुकने ही वाले हैं. अब जो फोन आयेंगे वे या तो टच-स्क्रीन वाले होंगे या उनके की-बोर्ड, टाइप राईटर के की-बोर्ड जैसे होंगे जिन्हें QWERTY की-बोर्ड कहा जाता है. यानि, आजकल बहुप्रचलित एबीसी के क्रम में टाइप करने वाले मोबाइल फोन का ज़माना गया ही समझो. ये जानने के लिए कि इन्हें QWERTY की-बोर्ड क्यों कहा जाता है, आप अपने कंप्यूटर के की-बोर्ड को देखिये. गिनती टाइप करने वाले बटनों के ठीक नीचे वाली लाइन में जो बटन हैं वे इसी क्रम में हैं.

अमरीका के लास वेगास में चल रहे व्यापर मेले में इस बार एक भी ऐसा नया मोबाइल फोन पेश नहीं किया गया जो प्रचलित मॉडल जैसा हो. भारत में भले ही ज्यादातर लोगों का अंग्रेजी की-बोर्ड से कुछ भी लेना देना न हो, ये माना जाता है की लोग QWERTY की-बोर्ड को अधिल सुगम मानते हैं. ये बात भी दीगर है कि इन मोबाइल फोन का की-बोर्ड इतना छोटा होता है कि आप आम की--बोर्ड की तरह तो इसका प्रयोग यूं भी नहीं कर सकते.

QWERTY की-बोर्ड और टच-स्क्रीन पर अधिक ध्यान देने का कारण कम्पनियाँ ये बताती हैं कि मोबाइल पर टेक्स्ट मेसेज और इन्टरनेट का बढ़ता प्रयोग इसकी मुख्य वजह हैं. मोबाइल कम्पनियों ने पाया कि लोगों ने मोबाइल फोन का प्रयोग टेक्स्ट मेसेज के लिए, बात करने की अपेक्षा कई गुना ज्यादा किया.

इसी मेले में, सैमसंग कम्पनी दुनिया का पहला OLED (organic light-emitting diodes) फोन भी लेकर आ रही है. अभी तक आपने LED या प्लाज़्मा स्क्रीन वाले फोन ही देखे होंगे. OLED, डाईओड का लेप यदि आप किसी भी सतह पर कर दें तो उसे स्क्रीन की तरह प्रयोग किया जा सकता, ज़रुरत केवल उन डाईओड तक बिजली से सिग्नल पहुंचाने की होती है, OLED लगभग डेढ़ दशक पुरानी खोज है किन्तु इसका व्यावसायिक प्रयोग बड़े पैमाने पर होना अभी शेष है. ये डाईओड क्योंकि अपने ही रौशनी उत्पन्न करते हैं इसलिए, ऐसे मोबाइल फोन की बैट्री लाइफ बढ़ जाती है. OLED की तस्वीर भी कहीं बेहतर गुणवत्ता वाली होती है.

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